Tuesday, October 25, 2016

मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र

                                              मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणापत्र
मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण और मानवीय समानता स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण प्रयास है । वैश्विक स्तर पर देशों में एकजुटता और मानवाधिकारों के लिए जागरूता आवश्यक है। वर्तमान हिंसा, आतंकवाद, अत्याचार के विरूद्ध सफल प्रयोग की आधारशिला मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पूरे विश्व में मानवाधिकार के लिए कुछ निर्देश और मार्गदर्शन का प्रयास किया।
वास्तव में देखा में जाये तो  संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में मानवाधिकार के लिए कोई विशेष से या अलग के प्रावधान नहीं है। परन्तु चार्टर की विभिन्न धाराओं में से कुछ धाराओं में मानवाधिकार के बारें में उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समय- समय पर जो प्रयास विश्व स्तर पर किये गये है वह निश्चय ही मानवाधिकार के संरक्षण में विशेष रूप से सराहनीय प्रयास है । यद्यपि चार्टर में अलग से मानवाधिकार के लिए कोई घोषणा या विशेष दस्तावेज तो नहीं लिखा गया है परन्तु अनेक स्थानों पर इतने स्पष्ट शब्दों में मानवाधिकार के लिए दशा, दिशा और खुले शब्दों में मानवाधिकारों के संरक्षण और अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का  आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । यही कारण है जब भी मानवाधिकारों की बात आती है तब मानव अधिकारों के सार्वभौम घोषणा पत्र का जिक्र आवश्य आता है। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा पत्र वैश्विक आधार पर सर्वमान्य और प्रचलित है।
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर की प्रस्तावना में : ‘‘ मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्ति के गौरव तथा महत्व मे, तथा पुरूष एवं स्त्रियों के समान अधिकारों में‘‘ विश्वास प्रकट किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक और सामाजिक परिषद को मानवाधिकारों के संरक्षण का दायित्व दिया गया।
वही संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 68 के अधीन यह परिषद मानवाधिकारों के लिए आयोग का गठन कर या अन्य आयोगों को स्थापित कर सकती थी।
इस अनुच्छेद 68 को ही आधार मान कर परिषद द्वारा 12 फरवरी 1946 को एक आयोग अनुमोदित किया गया इस प्रकार 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुयी। चूंकि राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना जरूरी है, अतः संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों की जनताओं के बुनियादी मानव अधिकारों, मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार-पत्र में विस्तृत रूप से वर्णित किया जिससे अधिक व्यापक रूप से मानवीय स्वतंत्रता के अंतर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊंचा किया जाएं और संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानव अधिकारों और बुनियादी आजादियों के प्रति सार्वभौम सम्मान की वृद्धि करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर कार्य किया गया।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा ;न्दपअमतेंस क्मबसंतंजपवद व िभ्नउंद त्पहीजेद्ध

ज्ञातव्य हो कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते है । मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य मानवीय अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को ही माना गया। 1946 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना  के बाद जनवरी 1947 में आयोग की प्रथम बैठक हुयी । इस बैठक में श्रीमती इलेनार रूजवेल्ट ;भूतपूर्व राष्ट्रपति फ्रेकलिन डी0 रूजवेल्ट की विधवा द्ध को अध्यक्ष चुना गया । यहाॅ से  मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा पत्र के विचार को आधार मिला। उसके बाद से काफी वक्त तक विचार विमर्श होता रहा कुछ समरू- समय पर बैठक भी होती रही। विचार मंथन के बाद 7 दिसम्बर 1948 को एक प्रारूप स्वीकार किया गया और 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने पेरिस में मानवाधिकारों के विश्वव्यापी घोषणापत्र को स्वीकार कर लिया गया।
इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा को अंगीकार किया गया । इसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानव अधिकार दिवस मानया जाता है।
मानव अधिकारो का सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा में प्रस्तावना सहित 30 अनुच्छेद है । यह अनुच्छेद विश्व में मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में मार्गदर्शक का कार्य करते है।
इनमें न केवल नागरिक और राजनीतिक आधिकारों को विस्तारपूर्वक बताया गया वरन मानव के सामाजिक और अधिकारों का भी विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया।

मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा की चुनौती - मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा एक आाधार और प्रयास था विश्व स्तर पर मानवीय संवेदनाओं को जागने का सकरात्मक प्रयास था। इसकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह कोई कानूनी लेखपत्र तो नहीे है न ही इसे वैधानिक ताकत प्राप्त है।
यह मानवीय अधिकारोें की व्याख्या तो कर देता है परन्तु इन्हें कार्यान्वित करने के लिए कोई विशेष साधन या व्यवस्था का प्रावधान नहीे है। इसके साथ ही यह वैश्विक स्तर पर कोई सन्धि या उत्तरदायित्व की व्यवस्था करता है यह मात्र एक मौलिक सिद्धांतों का घोषणापत्र मात्र है, जिसपर सदस्यों ने औपचारिक रूप से मतदान किया है। अतः अभी भी वैश्विक स्तर पर सभी के मानवाधिकार की रक्षा हो यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा का महत्व -
मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा से विश्व के सभी देशों को मानवाधिकार के संदर्भ में प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। विश्व के लगभग सभी देश मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के बाद से वैश्विक रूप से मानवाधिकारों को समझ सके और एकमत राय से मानव के अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए प्रयत्नशील हुए हुए। सभी देशों ने अनपे अपने देश के संविधान और कानूनों में अधिकार का दर्जा दिलाने का प्रयास किया।

10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया गया। यह सामान्य सभा घोषित करती है कि मानव अधिकारों की यह सार्वभौम घोषणा सभी देशों और सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास है । जो मानवाधिकार की प्राप्ति की सफलता के प्रति एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करती है। इसका उद्देश्य यह है कि प्रत्येक देश, समाज और व्यक्ति  के हितों , अधिकारों और आजादियों के प्रति सम्मान की भावना जाग्रत हो । इसमें 30 अनुच्छेद है जिनमें ऐसे राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय उपाय और दिशा निर्देश है जिनसे सदस्य देशों की जनता तथा उनके द्वारा अधिकृत प्रदेशों की जनता इन अधिकारों की सार्वभौम स्वीकृति दे और उनका पालन कराएं। प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है।
                                                            संदर्भ ग्रन्थ और  उपयोगी पुस्तक

·         https://hi.wikipedia.org/wiki/
·         https://www.hrw.org/about

·         http://www.humanrights.com/voices-for-human-rights/human-rights-organizations/non-governmental.htmlekuokf/kdkj laxBuksa
फड़िया, डाॅ0 कुलदीप, प्रेस कानून और पत्रकारिता, प्रतियागिता साहित्य सीरीज, आगरा (2015)
गौतम रमेश प्रसाद और सिंह पृथ्वीपाल सिंह, भारत में मानव अधिकार ;उल्लंघन, संरक्षण, क्रियान्वयन एवं उपचारद्धविश्वविद्यालय  प्रकाशन,सागर म0प्र0 (2001)
धर्माधिकारी देवदतत माधव, मानव अधिकार क्यों और कैसे ?साहित्य संगम, इलाहाबाद (2010)
कौशिक, पीताम्बर दत्त, कल्याणी पब्लिशर्स, नोएडा


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