Thursday, June 20, 2013

चाँद ने आज फिर चांदनी से पूछा .
जब रात को सब सो जाते है.
कभी कभी भी  तारे मेरा साथ निभाना भूल जाते है.
फिर भी तुम साथ निभाती हो….
आखिर तुम दुनिया को क्या दिखाना चाहती हो.
चांदनी ने मुस्कुराया .
बोली मै तो तुम से ही निकली
 तुम मानो या ना मानो
मै बिल्कुल वैसी ही हु जैसे
मानव की परछाई हो .
सुख दुःख में साथ निभाती .
भले ही मानव जाने ना जाने
अंधेरो में भी मै  ही उसको य अहसास दिलाती
रात की ख़ामोशी में एकबार  फिर अंधेरो के बीच
मानव की परछाई को उससे  मिलाती .
तुम चाँद हो मेरा वजूद ही तुमसे से है
बस दुनिया को ये दिखाती .
अपने आत्मविश्वास को चांदनी बना लो  .
अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लो .
रात भी रास्ता मिल जायेगा .
अंधेरो में भी ये कोई है जो अपना
साथ निभाएगा .
और मानव का जीवन भी आत्मविश्वास से
चांदनी रात  बन जायेगा .


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