जरूरत है हिन्दी पत्रकारिता को नये रंग और जोश की
भारत में
लोकतंत्र है और
आप जानते है
कि वर्तमान में
पत्रकारिता का बहुत
महत्व है। आम
आदमी की को
आवाज देती है
पत्रकारिता पूरी दुनिया
में जो कुछ
घट रहा है।
यह सारी जानकारी
हमें पत्रकारिता के
माध्यम से मिलती
है। पत्रकारिता का
क्षेत्र बहुत बड़ा
है। यह दैनिक
जीवन का हिस्सा
बन गयी है।
पत्रकारिता ही हमें
समाज के विभिन्न
वर्गो की बातों
विचारों तथा उनकी
समस्याओं के समाधान
की जानकारी देती
है। पत्रकारिता ही
हमें समाज के
विभिन्न वर्गो बातों विचारों
तथा उनकी समस्याओं
के समाधान की
जानकारी देती है।
ऐसे हिन्दी
पत्रकारिता पत्रकारिता और हिन्दी
भाषी पत्रकारोे का
भविष्य कैसा है
? यह विचारणीय प्रश्न
है जो
पूरी दूनिया की
सुध लेते है
उनकी सुध कौन
लेगा ?
हिन्दी पत्रकारिता की
समस्या और समाधान का
विश्लेषण करने का
यह प्रयास मात्र
है। हिन्दी पत्रकारिता
की के
अन्र्तगत हम हिन्दी
समाचार पत्र न्यूज
चैनल और हिन्दी
मैग्जीन को देखते
है और घटना की
सही जानकारी को
समाचार के रूप
में कर अपने
पाठकों तक पहँुचाने
वाला व्यक्ति पत्रकार
कहलाता है ।
विद्वानों का मत
है कि नारद
प्रथम पत्रकार थे।
जिस तरह नारद
जी भगवान और
राक्षसों के बीच
प्रसिद्ध थे
खबरें एक स्थान
से दूसरे स्थान
तक पहँुचाने के लिए
उसी तरह पत्रकार
भी विभिन्न क्षेत्रों
की खबरों को
पाठकों तक पहँुचाने
का कार्य करते
है।
वर्तमान जगत में
पत्रकार जिस घटना
को खोजकर व
छांटकर लाता है
समाचार पत्र उसी
घटना को समाचार
के रूप में
छापकर जनता तक
पहँुचाता वही समाचार
लोगों की जुबान
पर चढ़ जाता हैं।
कहा जाता
है कि एक
अच्छा पत्रकार बनने
के समाचारों को
सूॅघने की क्षमता
होनी चाहिए, लिखने
की आदत और
सच्चा और ईमानदार
व्यक्ति होना चाहिए। भाषा
का ज्ञानी और
धैर्यवान भी आवश्यक
है। इसके साथ
ही पाठकों की
रूचि को समझने
वाला होना चाहिए।
पत्रकारों को
जनता व सरकार
के बीच की
कड़ी माना जाता
है, समय के
साथ कम्प्यूटर और तकनीकी
क्षमता और दक्षता
भी आदर्श मानवीय
गुणों के साथ
पत्रकार का आवश्यक
अंग बन गयी।
वर्तमान में 24 घंटे समाचारों
के दौर में
एक ओर तो
समाचारों की विश्वसनीयता
पर सवाल उठते
दिख रहे तो
पत्रकारों के संदर्भ
में बात करें
तो वह भी
समाचारों और देश
की समस्याओं का समाधान
खोजते अपनी और
देश दुनिया की
उलझनों में उलझे
नजर आते है।
एक ओर कहा
जाता है कि
पत्रकारिता जिज्ञासा का ऐसा
दर्पण है जिससे
हम समाज में
घट रही घटनाओं
को जान और
समझ पाते हैं
इसी कारण पत्रकारिता
की समाज में
महत्वपूर्ण जगह है।
जनता को सूचना
देना, मनोरंजन करना
और शिक्षित करने
का कार्य पत्रकारिता
बखूबी निभा रही
है तो वही
दूसरी ओर यदा
कदा खबरों की
प्रतिस्पद्र्धा में पत्रकारिता
पर अनेक सवाल
भी उठ रहे
है।
पत्रकारों ने समाज
के विकास में
अहम योगदान दिया
हैं चाहे वह
आजादी का संघर्ष
हो या सामाजिक
समस्याएं इतिहास गवाह है
कि पत्रकारों ने
समाज को दिशा
दी है।
कहा जाता है
कि भारत में
हिन्दी पत्रकारिता मिशन के
रूप में हुयी
थी परन्तु वर्तमान
स्वरूप व्यावसायिक हो गया
हैं एक ओर
जहाॅ यह सच
है कि हिन्दी पत्रकारिता का
अतीत स्र्विणम था
वही यह भी
सच है कि
हिन्दी पत्रकारिता पर विज्ञापनदाताओं
और राजनीतिक दबाव
के साथ अनेक
आर्थिक और व्यावसायिक
दवाबो का सामना
कर रही है।
वर्तमान युग में
अंग्रेजी का बोलबाला
है और हिन्दी
पत्रकारों को अनेक
शोषणों और चुनौतियों
का मुकाबला करना
पड़ रहा है
ऐसे में सबसे
अहम प्रश्न यह
है कि जो
पत्रकार दूसरों को शोषण
से बचता है
वह अपने जीवन
की चुनौतियों का
मुकाबला कैसे करे
?
पत्रकारों की समस्या
का समाधान क्या है
?
हिन्दी पत्रकारिता का
अतीत की भव्यता
को पुनः प्राप्त
करना और हिन्दी
समाचार पत्रों और चैनलों
के भविष्य को
संकटकालीन अवस्था से बचाने
के लिए आवश्यकतानुसार
कुछ ठोस कदम
उठाने बहुत आवश्यक
है मेडिकल काउंसिल
और लाॅ बार
काउंसिल की तरह
एक नियामक बोर्ड
और पत्रकारों की
नौकरी की अस्थिरता
के साथ पत्रकारिता
की नौकरियों का
विज्ञापन निकाला जाना और
मानक तय होना
आवश्यक है। हम
इस सच से
इंकार नहीं कर
सकते कि बिना
खबरों के हम
दुनिया को नहीं
जान सकते और
किसी भष्ट्राचार की
तह तक बिना
पत्रकार के पहुॅच
सकते है। तो
जनबा पत्रकारों और
पत्रकारिता की खूबियों
और खामियों का
आकलन करने के
साथ ही समाचार
चैनलों और पत्रों
के दबंग पत्रकारों
का रूतबा और
मनमानी को कम
करना भी जरूरी
है ।
मेरी बातों और तर्को
से आप सहमत
और असहमत हो
सकते है परन्तु हिन्दी
पत्रकारों की प्रमुख
समस्या शोषण और
आर्थिक स्थिति को माना
जा रहा है
यह सर्वविदित सत्य
है। बस अंतर
इतना है कि
कोई सत्य स्वीकार
कर रहा है
तो अस्वीकार कर
रहा है।
पत्रकारिता
में खबरों का
स्वरूप बिक गया
है या हिन्दी
पत्रकारिता का स्तर
गिर रहा है
यह इल्जाम सदा
कदा सुनने को
मिल जाते है
परन्तु समाचार पत्रों और
चैनलों में कार्यरत
हिन्दी और अन्य
भाषाओं के पत्रकारों
के वेतन में
एकरूपता का ना
होना इसकी बहुत
बड़ी वजह हो
सकती है। अब
वक्त आ गया
है कि हिन्दी
पत्रकारों की समस्याओं
के लिए एकजुट
आवाज और प्रयास
की आवश्यकता है।
इसके साथ ही
पत्रकारों को अपने
कार्यो की गुणवत्ता
को सुधरना होगा
उनका ज्ञान और
मेहनत ही उन्हें
रूतबा दिला सकती
हैं, यह उन्हें
समझना होगा। इसके
साथ पत्रकारिता प्रशिक्षण
की उचित व्यवस्था
और पत्रकारिता शिक्षा
और फील्ड पत्रकारिता
के बीच की
खाई को पटाते
हुए भारत में
पत्रकारिता के स्वर्णिम
भविष्य की नींव
डालनी होगी।
सूचना शिक्षा और
मनोरंजन के लिए
पत्रकारिता की आवश्यकता
थी है और
हमेशा रहेगी ।
बस जो शोषित
है उनको बचा
लो इन पत्रकारों
की भी जरा
सुध लो इनमें
वो ताकत है
जो तख्तो ओ
ताज पलट सकती
है मेरे दोस्त
अपने हौसलों को
फिर से जगा
लो यह पत्रकारिता
है इसमें भी
नया जोश जगा
लो।
डाॅ साधना
श्रीवास्तव