Sunday, March 22, 2020

वह रास्ता

दैनिक जागरण 25 अगस्त 2008 में दिन सोमवार पुनर्नवा मैं प्रकाशित रचना वह रास्ता
वह रास्ता
 लेखिका साधना श्रीवास्तव
मूसलाधार बारिश हो रही थी कोमल ने खिड़की पर पर्दा हटा कर देखो बाहर सड़क पर रोजाना से कम भीड़ थी.
उस खराब रास्ते को सोचकर कोमल की इंस्टिट्यूट जाने की इच्छा नहीं हुई ,उसे रास्ते का कीचड़ गड्ढे और खराब हालत वाली सड़क की याद आने लगी जिस पर चलते हुए कल ही उसने दो लड़कियों को फिसल कर गिरते देखा था .
एक का सबके सामने मजाक बना था और दूसरे का पैर टूट गया था उसे पास के दुकानदार अस्पताल ले गए .
उसे वृद्ध दादाजी भी याद आने लगे जिनका कुर्ता पजामा कीचड़  से गंदा हो गया था.
दरअसल जिस इंस्टिट्यूट में कोमल काम करती थी वह सड़क के मुख्य मार्ग पर स्थित था और जिसकी खुदाई 2 माह पूर्व पाइप लाइन बिछाने के लिए की गई थी.
अभी तक वह सड़क अपने असली रूप में आने को तरस रही थी जिसका दुष्परिणाम उस रास्ते के दुकानदार भुगत रहे थे जिनकी दुकानदारी 2 माह से ठप थी.आजकल बेचारे बोहनी को तरस रहे थे.
 रिक्शा वालों ने वालों ने खराब रास्ते पर जाने के दाम बढ़ा दिए थे जो कुछ जाना ही छोड़ दिया था बेचारे राहगीरों की मुसीबत थी की उस रास्ते का कोई विकल्प नहीं था अतः उस पर चलना उनकी मजबूरी थी गर्मी में तो गनीमत थी .
मिट्टी के ढेर से उड़ती धूल और खराब रास्तों पर चलना तो फिर भी आसान था परंतु बारिश के मौसम में हालात बद से बदतर हो गए थे .
जब दुकानदारों ने धरना प्रदर्शन किया प्रेस मीडिया में चर्चा हुई तो प्रशासन ने रातों-रात सड़क पर बिना मिट्टी और  बिना समुचित व्यवस्था के ईट
 बिछुआ दी अब एक और कच्ची मिट्टी का ढेर दूसरी ओर गड्ढे थे कुछ दूर कुछ दूर रहते थे
तो कुछ दूर रहते थे ईटों की पट्टी थी जगह-जगह पानी भरने से रास्तों का अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया था .
लोगों ने पानी के बीच बीच में जिन पर पैर रखकर कीचड़ से बचकर राहगीर आगे जाते इस सड़क पर चलकर अखंड भारत अर्थात कहीं पर्वत कहीं नदी तो कहीं संपल का एहसास होता था समतल का एहसास होता था.
और यह तो तय था कि उस रास्ते पर चलते चलते राहगीर वक्त प्रभु को अवश्य याद करते थे कोमल को हल्का बुखार था जो कल पानी में भीगने से आया था उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी जाने की, उसे पता था कि इस खराब मौसम में उसके ज्यादातर साथी और छात्र छात्राएं भी नहीं आएंगे और ना वह घर से निकलेंगे लेकिन उसे तो जाना ही था यह काम ही उसका सहारा था.
सच तो यह था कि बीते कुछ महीनों से कोमल बहुत उदास थी उसके मन का सारा
उत्साह जो यथार्थ के धरातल पर आकर तिरोहित होने लगा था एक के बाद एक परेशानियां उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी कोमल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और अच्छी नौकरी के लिए वह प्रयासरत थी , परंतु किसी ग्रह का फर्क है या बुरे समय का असर हर जगह उसे हताशा मिल रही थी वह जहां भी अप्लाई करती तो कहीं वैकेंसी कैंसिल हो जाती तो कहीं पर  इंटरव्यू का
फर्स्ट राउंड क्लियर हो जाने के बाद सेकंड राउंड का इंटरव्यू लेटर डाकिया देर से देता कहीं उसकी ट्रेन लेट हो जाती तो कहीं कुछ और बाधा फिर भी उसने कोशिशें नहीं छोड़ी इधर उसको कुछ पारिवारिक मानसिक और भावनात्मक स्तर के दिक्कतें भी पेश आ रही थी पिछले कुछ दिनों तो वह दूर के एक नौकरी का इंटरव्यू भी देख कर आई थी कि कोई राह तो खुले कोई नया रास्ता मिले.
वहां का इंटरव्यू अच्छा होने के बाद भी उसे दूसरे राज्य मैं क्षेत्रीय ताकि समस्या आई .
पिछले 1 साल में अच्छे एकेडमिक रिकॉर्ड और अनथक प्रयासों के बावजूद उसकी सारी कोशिशें विफल रही धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास टूटने लगा वह जहां काम कर रही थी वहां ना तो सम्मानजनक वेतन था ना जान जॉब सेटिस्फेक्शन आधा वेतन तो फॉर्म भरने में चला जाता आधा इंटरव्यू देने मार्कशीट की फोटो कॉपी कराने और मोबाइल का बिल चुकाने में जाता .
उसका परिवार उसकी कोशिशों में उसके साथ तो था परंतु धीरे-धीरे समय के साथ परिवार की आं खों में भी कोमल के प्रति प्रश्नचिन्ह नजर आने लगे कोमल को बिल्कुल नहीं समझ आता की उसके पूरे जीवन सिर्फ पढ़ाई ईमानदारी मेहनत और सच का साथ दिया.
 हमेशा यही कोशिश रहती है कि कभी उसके कारण किसी का दिल ना दुखे सारे इंटरव्यू भी उसके अच्छे जाते जवाब तो सही होते फिर भी किस्मत का ताला नहीं खुल रहा था.
उसे समझ नहीं आ रहा था कि अचानक मोबाइल की घंटी ने उसकी सोच को विराम लगाया उसने बाहर देखा बारिश अभी भी हो रही थी उसने मुझे मन से अपनी सबसे मजबूत सैंडल पहनी जो उसने बारिश और खराब रास्तों से बचाव के लिए ली थी.
छाता लिया और चल पड़ी उस खराब सड़क पर एक बार फिर एक नई जंग लड़ने आज रोज से भी ज्यादा खराब हालत थे उससे भी ज्यादा खराब हालात थे रिक्शा वालों ने चौगुनी दाम पर भी उस रास्ते पर जाने से मना कर दिया था कारण आज पानी भर गया था कोमल नहीं पानी को देखा.
अपनी सलवार को मोड़ कर सेफ्टी पिन लगा ली और धीरे-धीरे व कीचड़ व पानी से भरे रास्तों पर एक-एक कदम आगे रखने लगी एक हाथ में बैग दूसरे हाथ में छाता था मन ही मन वह नसीब को कोस रही थी ऐसा खराब रास्ता उसी के मुकद्दर में लिखा था आगे देखें एक ट्रक आगे देखा एक ट्रक रास्ते में फंसा था शायद यह वक्त था जो सड़क के लिए ही तो भरकर लाया था और 10 गया होगा कोमल को प्रशासन की लचर व्यवस्था और कार्यवाही के साथ अपने किस्मत पर हंसी आ रही थी .
लाख बचते हुए भी कपड़ों पर कीचड़ के छींटे लग रहे थे घर से निकली ही क्यों अब तक आधा रास्ता तय कर चुकी थी अब तो वापस लौटने का मतलब ही नहीं था .
अंत वह अपनी मंजिल तक पहुंच गई .
छाता बंद करते हुए उसने पीछे मुड़कर देखा छाता बंद करते हुए देखा, उसने छाते का टपकता पानी छिड़का और पीछे मुड़कर देखा पूरा रास्ता गंदे पानी कीचड़ और गड्ढों से पटा हुआ था पैर रखने तक की जगह नहीं दिख रही थी लेकिन अभी भी
 कुछ लोग उस  रास्ते पर  अपने पैर रखने की कोशिश करते हुए जगह खोजते हुए आगे बढ़ रहे थे उसे यह पल अपनी जीत का लग रहा था कि कैसे सारी मुसीबतों को झेल कर सही समय पर इंस्टिट्यूट आ गई एक पल में उसके जिंदगी का नजरिया बदल गया उसे लगा जिंदगी भी खराब रास्तों की तरह होती है जिसमें इतनी मुसीबतें इतना अंधेरा होता है कि रास्ता नजर नहीं आता है परंतु कहीं ना कहीं मंजिल तक पहुंचने और पैर रखने का रखने की जगह उन्हीं रास्तों में होती हैं हमें इतना अंधेरा नजर आता है किंतु कहीं ना कहीं उन्हें खराब रास्तों में पैर रखने और मंजिल तक पहुंचने का जुगाड़ छुपा रहता है बस जरूरत होती है सावधानीपूर्वक उन संभावित खतरों को आभास करके चलने की दो पल पहले  जो रास्ता उसे दुखी कर रहा था अब वही रास्ता उसे आगे बढ़ने का हौसला दे रहा था बिना रुके अपनी मंजिल तक पहुंचने और आगे बढ़ते रहने में ही जीत होती है खराब रास्ता था तो उसने सेंडल बदले फिर पानी से बचने के लिए छाता लिया कीचड़ से भरे रास्तों में उसने पैर रखने का रास्ता खोजा उसका एक-एक कदम संभाल कर रखा
तो वह सही समय पर इंस्टीट्यूट आ गई उसने अपना नजरिया बदला और मन ही मन संकल्प किया कि बिना हारे वह जिंदगी के कीचड़ भरे मुसीबत से भरे रास्तों पर चल कर अपनी मंजिल तक पहुंच कर ही दम लेगी कोमल एक नई उमंग के साथ क्लास की सीढ़ियां चल रही थी अभी उसे यह मालूम नहीं था कि कंप्यूटर रूम में उसकी मेल बॉक्स में एक ईमेल उसकी प्रतीक्षा कर रहा है