क्या वो अनाथ था
आज देखा फिर उसे चौराहे पर
कुछ मैले और गंदे से थे कपड़े और बिखरे से बाल उसके
मासूम आखों में हज़ारों सवाल
देखने मे भूख और प्यास से बेहाल
दूर से दिखती थी उसकी बेबसी
भेद गयी थी अंतस को मेरे
भीग गए थे मेरी भी आँख के कोने
दिल पसीज गया था देख उस अनाथ की दशा
पैसों और भीख देना था पाप
सोचा कर दू एक वक़्त खाने का उसका इंतजाम
पिछली बार की तरह वो खुश हो गया मुझे देख के
पेट की भूख शांत हो गयी उसकी आखों में थे करुणा के भाव
सोचती काश होता उसका भी परिवार
उस अनाथ को भी न होता किसी बात का अभाव
दिन बीते महीने और कुछ साल गये
छूट गया वो शहर मेरा क्योकि मुझको भी करने थे कई काम
कुछ सालो बाद जब लौटी उस चौराहे पे जिसपे मिलता था
वो अनाथ कुछ सालो पहले
मुझको उस बच्चे को देखने की थी चाह
काम सभी निपटा जब पहुंची उस चौराहे पर
सर्द बहुत थी रात कालिमा घनी
दूर दूर तक सन्नाटे का वास
दर्द से मेरा सीना भर आया
मेरी आखों आँसू नहीं गुस्से का था सैलाब
जब देखा नहीं वो अनाथ नहीं था
था उसके साथ उसका पूरा परिवार
इस बार दो बच्चे उससे भी छोटे थे
भूख नहीं गरीबी नहीं न थी कुछ कुछ मजबूरी
भीख मांगना था कमाई का जरिया
दूर उसने देखा जान गया था वो भी मेरे भाव
कुछ शब्द नहीं न थे अब कुछ भाव
लौट गयी मैं बिन कुछ बोले
सोच रही थी कैसा था उसका परिवार
इससे भला तो वो होता अनाथ
डॉ साधना श्रीवास्तव
आज देखा फिर उसे चौराहे पर
कुछ मैले और गंदे से थे कपड़े और बिखरे से बाल उसके
मासूम आखों में हज़ारों सवाल
देखने मे भूख और प्यास से बेहाल
दूर से दिखती थी उसकी बेबसी
भेद गयी थी अंतस को मेरे
भीग गए थे मेरी भी आँख के कोने
दिल पसीज गया था देख उस अनाथ की दशा
पैसों और भीख देना था पाप
सोचा कर दू एक वक़्त खाने का उसका इंतजाम
पिछली बार की तरह वो खुश हो गया मुझे देख के
पेट की भूख शांत हो गयी उसकी आखों में थे करुणा के भाव
सोचती काश होता उसका भी परिवार
उस अनाथ को भी न होता किसी बात का अभाव
दिन बीते महीने और कुछ साल गये
छूट गया वो शहर मेरा क्योकि मुझको भी करने थे कई काम
कुछ सालो बाद जब लौटी उस चौराहे पे जिसपे मिलता था
वो अनाथ कुछ सालो पहले
मुझको उस बच्चे को देखने की थी चाह
काम सभी निपटा जब पहुंची उस चौराहे पर
सर्द बहुत थी रात कालिमा घनी
दूर दूर तक सन्नाटे का वास
दर्द से मेरा सीना भर आया
मेरी आखों आँसू नहीं गुस्से का था सैलाब
जब देखा नहीं वो अनाथ नहीं था
था उसके साथ उसका पूरा परिवार
इस बार दो बच्चे उससे भी छोटे थे
भूख नहीं गरीबी नहीं न थी कुछ कुछ मजबूरी
भीख मांगना था कमाई का जरिया
दूर उसने देखा जान गया था वो भी मेरे भाव
कुछ शब्द नहीं न थे अब कुछ भाव
लौट गयी मैं बिन कुछ बोले
सोच रही थी कैसा था उसका परिवार
इससे भला तो वो होता अनाथ
डॉ साधना श्रीवास्तव
Wah ji wah maza aa gya. Aapne to puri gatha likh dali kavita me.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिकता
ReplyDeleteNice Maa'm
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