Saturday, November 4, 2017

तलाश जिन्दगी की

                            तलाश जिन्दगी की
सब शून्य या नश्वर है
ये मैने सुना था कभी
फिर भी देखा
लोगों को तलाशते जिन्दगी
जीने की चाह में देखा
हर रोज लोगों को मरते देखा
कोई मान की तो
कहीं पैसों की आह भरती
फिर भी देखा
लोगों को तलाशते जिन्दगी
मानव ने कहा पे्रम है जिन्दगी
तो सन्यासी ने कहा एक मोह है जिन्दगी
एक माॅ जो लड़ रही थी
अपनी मौत से.........
देखा उसको अपनी बेटी की आॅखों में 
तलाशते जिन्दगी.................
फिर मैने जाना कि क्या है जिन्दगी
हाॅ ये नश्वर है, मोह है
फिर भी अपनों की खातिर ही जीना है जिन्दगी।
डॉ साधना श्रीवास्तव

7 comments:

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  2. बहुत खूब सम्माननीय मैम। चंद लाइनें इस लेखनी के लिए-
    जिंदगी एक कागज की नाव है
    मनुष्य तो महज पतवार है
    चले जा रही है बहे जा रही है
    अपने मस्त झोके से
    कभी-कभी आहिस्ता-आहिस्ता
    कभी हिलकोरे से।

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  3. Wah khub best wishes.... Ap kya krte hai....

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