Monday, June 1, 2015

मंजिले सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी 1

1 June 1, 2015 मंजिले
सपनों को सच करने का रास्ता बताती हिन्दी भाषी युवक के सफलता की कहानी    1

  
जैसे-जैसे ट्रेन बदलापुर स्टेशन छोड़ रही थी
वैसेवैसे दीपक को मंजिल करीब नजर  रही थी। 
उसकी आँखों मंे हजारों सपने एक बार फिर झिलमिला उठे।

दीपक ने इंटर की परीक्षा पास की हैं। 
हिंदी बोर्ड से उसने जिला टाॅप किया था। आंखों में हजारों सपने लिये 
होनहार दीपक ने शहर के सबसे बड़े कालेज में कृषि विज्ञान से स्नातक के लिए एप्लाई किया था। दीपक को याद  रहा था 
कि कैसे उसके बूढ़े किसान पिता की आँखों में आॅसू  गये थे। 
इंटर में जिस दिन जिला टाॅप करने के उपलक्ष्य में समाचार पत्रों की 
सुर्खियों में उसका नाम और फोटो छपी थी। 
रातों- रात दीपक उस गाँव का स्टार बन गया था। जिसे देखो सब दीपक और 
उसके पिता को बधाई पर बधाई दे रहा  था।

गाँव का हर बच्चा दीपक की तरह पढ़ने का सपना देख रहा था तो हर 
बुर्जुग अपने बच्चे को दीपक की मिसाल दे रहा था। 
दीपक के पिता एक गरीब किसान और माँ सुशीला घरेलू भारतीय नारी थी। 
घर में दो बड़ी बहनें सरला  सुशीला थी। जिन्होंने बचपन में ही पढ़ाई
 छोड़ दी थी।
 अनपढ़ माँबाप को अपनी गरीबी मिटाने का एकमात्र उपाय दीपक में ही  था।
 दीपक को शिक्षा दिलाने के लिए माँ ने गहने गिरवी रख दिये .......पिता ने जमीन और दोनों बड़ी बहनों ने पढ़ाई छोड़ दी। अपने परिवार वालों के सपने होनहार दीपक को भी दिखते। 
उसने दिन  और  रात एक कर दिया पढ़ाई में...................सोना...................खाना.................हर आराम भूल दिनभर सिर्फ और सिर्फ एकाग्रचित होकर माँ सरस्वती को सम्पूर्ण सर्मपण कर दिया। गाँव के मास्टर साहब भी दीपक की लगन  इच्छाशक्ति से बहुत प्रसन्न थे।

इण्टर का परीक्षाफल उसकी मेहनत  सपनों का प्रतिफल था। 
आगे की पढ़ाई के लिए उसने शहर के सबसे बड़े कालेज में कृषि विज्ञान से बी.एस.करने की सोची। स्नातक की लिखित प्रवेश परीक्षा में भी उसने सर्वोत्तम अंक प्राप्त किये थे। 
आज वह ट्रेन से साक्षात्कार के लिए जा रहा था। 
ट्रेन की खिड़की से पीछे छुटते टीलोंपेड़ों के झुरमुट साथ दीपक को एहसास हो रहा था कि उसके बुरे दिन भी पीछे छूटते जा रहे है। 
दीपक जानता था कि गरीब किसान के लिए जमीन उसकी माँ और सब कुछ होती हैं। उसके पिता किशनलाल ने अपनी जमीन तक गिरवी रख दी थी। दीपक के इंटर के परीक्षाफल ने उसे आत्मविश्वास से परिपूर्ण कर दिया था।

दीपक ने जानबूझ कर कृषि विज्ञान से स्नातक करने का फैसला किया 
ताकि खेती की नयी-नयी तकनीक जान सके। 
अपने फसलों की अच्छे से देखभाल  तरक्की कर सके। पिता के सपनों को पूरा कर सकें और गाँव के गरीब किसानों का उद्धार भी कर सके। 
यह सोचते-सोचते कब उसे नींद  गयी पता ही  चला। 
पूरी रात सपने में वह अपने पिता का मुस्कुराता चेहरा
खेतों में लहराती फसलें  अपनी बहनों की शादी देखता रहा।

चाय................गर्म चाय.........................चाय...................फेरीवालों की आवाज सुनी तब उसकी आंखे खुली। खिड़की से बाहर देखा हल्की-हल्की भोर हो चुकी थी। लाल सूरज बादलों के पीछे से उदय हो रहा था।
 दीपक को लगा यूं ही उसके भाग्य का सूर्य भी उदय हो रहा हैं। उसने चायवाले को आवाज दी।

’’छोटू इधर सुन’’

’’जी बाबू जी’’

’’एक चाय देना’’

’’ये लो बाबू’’

दीपक ने उस लड़के को ऊपर से नीचे तक देखा उम्र होगी यही कोई 10 12 साल ..............बिखरे बाल......................गंदे कपड़े.........................और हाथ में चाय की केतली ........................दीपक ने जेब से पैसे निकालते हुये कहा --’’पढ़़ते हो ?’’
लड़के ने कहा ’’नहीं’’

दीपक ने कहा - ’’पढ़ना चाहिए - शिक्षा बिना तो जीवन बेकार होता है’’

’’सुबह-सुबह समय मत खराब करो साहबक्या होगा पढ़-लिख कर’’

’’क्यों नहीं होगाशिक्षा से हम अपनी और देश की किस्मत बदल सकते हैं।’’

 ____________________________________________ आगे की कहानी आप जानना चाहते है तो मेरा ब्लॉग देखते रहे कथा काल्पनिक है.... मौलिक है किसी से जुड़ाव संयोग मात्र है   
 साधना श्रीवास्तव 

2 comments:

  1. Mam jaldi complete kariye story...intresting hai kafi

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  2. Apke sare post padhe..bahut accha likha hai..aise hi likhte rahiye..dekhiyiega puri duniya me apka nam hoga

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