सूचनाएं है गुप्त
मन चिंततित
चाहता है सब
बहुत कुछ करना
फिर भी मन
है व्यथित
यह कैसा तंत्र
है
स्ब ओर
उथल पुथल
मन व्याकुल, आतुर
क्या ऐसे ही
विकास होगा राष्ट्र
का
क्या ऐसे ही
मिल सकेगे अधिकार
ऐसे तो कुछ
भी ना होगा
समझना होगा, सोचना होगा
निकालना होगा समाधान
तब ही कुछ
रास्ते निकलेंगे
यू जब तक
हम काटते रहेगें
रास्ते दूसरों के खुद
भी गढ़्ढे में
गिरते रहेगें।
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