Sunday, May 10, 2020



वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में एक गंभीर बीमारी और महामारी के रूप में उभरे कोरो ना का संकट सभी समझ रहे हैं. आज
के समय में जब कोरोना की वैक्सीन दवाई या कोई समाधान नहीं दिख रहा है उस वक्त जानकारी ही बचाव है और सही और सकारात्मक संचार ही एक सशक्त हथियार है .

 हम हम सब जानते हैं सरकार ने मोबाइल फोन की रिंगटोन से लेकर हर वह साधन जिससे संचार हो सकता है चाहे वह विज्ञापन हो समाचारपत्र हो मीडिया हो सोशल मीडिया हो या व्यक्तिगत पहुंच द्वारा लोगों को समझाना संचार को ही करोना से युद्ध का सबसे सशक्त हथियार कहां जा सकता है जानकारी ही बचाव है यह मूल मंत्र है.

सोशल मीडिया के तहत फेसबुक ट्विटर ब्लॉग इत्यादि सभी आ जाते हैं सोशल मीडिया ने एक और जहां उन खबरों को तवज्जो दिया है जिन्हें मुख्यधारा की मीडिया नहीं दिखाता है तो वही दूसरी ओर से एक न्यूज़ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अतिशयोक्ति और विश्वसनीयता का संकट उत्पन्न किया है आपदा प्रबंधन के समय व्हाट्सएप पर जारी अफवाहें गलत न्यूज़ फेक न्यूज़ निश्चय ही संकट को करोना की चुनौतियों को बढ़ाते हैं परंतु वही सोशल मीडिया ने  कोरोना में लोगों की अभिव्यक्ति और रचनात्मकता को एक मंच दिया है बहुत सारे लोगों ने लॉक डाउन के समय में   अपने यूट्यूब चैनल फेसबुक इंस्टॉल इंस्टाग्राम pratilipi.com और अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों के द्वारा रचनात्मक सृजनात्मक कहानी कविताएं और कहानियों का मंच दिया

 यह समय चुनौतियों का है इसमें  मैंने खुद को सकारात्मक रखने का बहुत प्रयास किया
 इसी क्रम में कुछ पुस्तकों के अध्याय अनेकों कविताएं अपना यूट्यूब चैनल अपने ब्लॉक साधना की साधना के जरिए खुद को उन लोगों को सकारात्मक रखने के संदेश दिए साथ ही विश्वविद्यालय की गतिविधियों और छात्रों से निरंतर संपर्क बनाए रखा जिसमें सोशल मीडिया ने अहम भूमिका निभाई इसी दौरान खुद को अपडेट करने के लिए बेबिनार   और फेसबुक की चर्चा में भाग लिया 
 छात्रों और परिवार से भी निरंतर संपर्क बनाए रखा .   साथ ही नई तकनीक और योग    भी सीखा.  
लाक डाउन के भी नियमों का गंभीरता से पालन किया.

 परंतु फिर भी खुद को सकारात्मक रखना सबसे बड़ी चुनौती है वर्तमान में मनोवैज्ञानिक दबाव अपनों की चिंता आसपास का महौल  और अकेलेपन  की अनेक चुनौतियां थी यह पूरा समय इंटरनेट और मोबाइल टीवी पर निर्भरता की वजह से कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई चुनचुनाहट चिड़चिड़ा हट घबराहट और बेचैनी के साथ एक अंजाना सा डर हमेशा मन में रहता है अपने से ज्यादा अपनों को खोने की चिंता और उनसे दूर होने की बेचैनी हर वक्त रहती है फिर भी हमारे हाथ में जो है वह हम कर रहे हैं अपने-अपने इष्ट देव और   प्रभु पर आस्था है कि वह कुछ अच्छा जरूर करेंगे यदि प्रकृति करवट ले रही है और वैश्विक स्तर पर भारत की चुनौतियां अब आर्थिक संकट भारत की अर्थव्यवस्था भी मन में बेचैनी उत्पन्न करती हैं जिस तरह से केस बढ़ रहे हैं और बाजार दुकाने ओपन हो रही हैं खुल रही हैं या निश्चय ही चिंता का विषय है इस वक्त प्रत्येक व्यक्ति नकारात्मकता और दुष्परिणाम को सोच रहा है या फिर एक काल्पनिक सकारात्मकता में जी रहा है परंतु इस वक्त जो सबसे बड़ी चुनौती है वह है समाधान खोजने की अगर जीवित रहे तो निश्चय ही भविष्य उज्जवल होगा तो ऐसा लगता है कि उस समय अनवर आवश्यकताओं की चीजों को छोड़कर राम को बढ़ाया जाना चाहिए क्या की स्थिति नियंत्रण में रहे सकारात्मक प्रयासों के बावजूद भी  एक अंजाना डर रहता है  तनाव और मनोवैज्ञानिक दबाव का अनुभव होता है फिर भी मेरा यही कहना है जानकारी ही बचाव है कोरोना को महामारी के साथ साथ  सामाजिक मनोवैज्ञानिक और आर्थिक संकटों का भी मुकाबला करना है अतः धैर्य और सकारात्मकता से ही समाधान मिलेगा जल्दबाजी में या घबराहट में सब कुछ खोलने से या फिर सिर्फ चिंता करने से कुछ नहीं होगा वक्त बुरा है परंतु निकल जाएगा इस हौसले के साथ हर दिन खुद से जीते हारते अकेलेपन से संघर्ष करते भी जाता है सोशल मीडिया के   के जरिए अपने परिवार और छात्र छात्राओं से   संवाद और संपर्क बना रहता है

डॉ साधना   श्रीवास्तव
Uttar Pradesh Rashi Tandon



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