Wednesday, February 25, 2015

धर्मांतरण 65
पागल हैं इससे दूर रहो। …………। शोर की आवाज़ बेचारी को भंडारे की में घुसने से भी डरा दिया
भूख से बेहाल मन्जिद तक जा पहुंची। पागल हैं.पागल हैं.पागल हैं
एक बार फिर निराशा हो लोट गयी
दूसरे धर्म के ठेकेदारो ने भी बेचारी को भूखा लौटा दिया। ....
 बेचारी अपनी बदकिस्मती पे रोती पानी पी कर सोच रही थी की कल किस धर्माधिकारी के पास जाया जाये जो ये समझे की मानवता नाम की भी कोई चीज होती है जो ये समझे की भूख किसी को पागल कर देती हैं 

2 comments:

  1. सामायिक कहा है , क्या खूब कहा है साधना जी , लिखती रहो ........

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  2. thanx nitin ji mere blog me story dekhne ka aur comment

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