Friday, July 17, 2020

Ek Toor yaado ka -- MGKVP university trip 2005

  शैक्षणिक भ्रमण- अनुभव, ज्ञान व रोमांच की अनोखी त्रिवेणी
नववर्ष का प्रथम दिन काफी उथल पुथल, उत्साह आशा निराशा के बीच बीता। दिन की शुरूआत बधाई लेने देने से हुयी। पूरा दिन टूर के सामान पैकिंग में गया। शाम चार बजे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान बुलाया गया। वहाँ सामूहिक भोजन व कुछ पेपर साइन करने थे। 1जनवरी 2005 को ही रात में हमारी टेªन चली। रास्ते में टंेªन से सड़के हरे भरे खेत खेतों में खड़े बजूके के पहाड़ टीले कुहरा ईटों की कटाई झोपड़ी छोटे छोटे मंदिर नदियों आदि के मनोरम दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। राजस्थान प्रदेश में प्रवेश करते ही सरसों के हरे भरे खेत दिखाई पड़े। अरावली और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ और हल्दी घाटी का क्षेत्र मन को उत्साहित कर गया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद, कानपुर, आगरा जैसे प्रसिद्ध शहर पड़े। राजकोट में इंडियन आॅयल की फैक्टरी दिखी। राजस्थान में छोटे-छोटे पेड़ थे, कटीली झाड़ियाँ थी। रात में अत्यधिक सर्दी पड़ती थी। गुजरात में साबरमती नहीं देखी। कपास के खेत दूर-दूर तक फैले थे। वहाँ लाल और काली मिट्टी भी देखने को मिली। लखतर से आगे छोटी-छोटी पहाड़ी। गुजरात काफी संसाधन युक्त प्राप्त लगा। सिंचाई के उत्तम साधन थे। जेनरेटर व पम्पिंग सेट की भी व्यवस्था थी। सड़के साफ थी, पेड़ों की ऊँचाई कम थी, छोटी-छोटी झाड़ियाँ थी। छोटे मकान भी पक्की ईटो के बने थे।
द्वारका के यादगार क्षण -  3 जनवरी की शाम 5ः30 पर 44 घंटे की यात्रा पश्चात् हम सब द्वारका पहुँचे। सभी थके। ठहरने की व्यवस्था शारदापीठ के मठ (आश्रम) में थी। फ्रेश होने के पश्चात् सभी ने द्वारकाधीश के दर्शन किये व वहाँ आरती में भाग लिया। रात्री सभी ने अपने-अपने घरो को फोन किया। पूरी रात आराम किया। दूसरे दिन प्रातः काल द्वाराकाधीस जी का दर्शन पूजन किया। प्रसाद-माला चढ़ायी। जहाँ रूकने की व्यवस्था थी। वही से अरब सागर का मनोरम दृश्य दिखता था। जीवन में पहली बार ज्वार भाटाा देखा। चाँद की रोशनी के प्रभाव से अरब सागर की लहरें किनारों को छूने को बेचैन हो उठी। सूर्य के प्रभाव से वो लहरें समुद्र की गहराइ्रयों में लौटने लगी। प्रातः काल मंदिर में प्रथम भोग माखन मिश्री कर लगता है फिर वही प्रसाद स्वरूप भकतों में बँटता है। गुजारती जन समूह भगवान द्वारिका जी की स्तुति व भजन गा रहा था। सारा वातावरण कृष्णमय, राधामय था। मन में भक्ति की धारा का प्रवाह हो रहा था। वहाँ के वातावरण में अवार शंाति थी। मन श्रद्धा से परिपूर्ण हो उठा। फिर सब समुद्र तट देखने गये जहाँ पूरे ग्रुप का फोटो सेशन हुआ। वहाँ सागर की लहरों की जल क्रीडा देख कर मन प्रसन्न हो रहा था। वहाँ बहुत शांति थी। हवाएं ठंडी ठंडी थी। उसके बाद थोड़ी शापिंग हुयी। हमने द्वारिका जी के पट व लाकेट खरीदे वापस गेस्ट हाउस लौटकर आये। वहाँ स्वामी स्वरूपानंद जी की प्रेस कांफेस हुयी। उन्होंने मठ, मंदिर व द्वारिका जी के बारे में जानकारी दी। फिर भोजन के उपरांत सभी वापस आ गये।
जामनगर- द्वारिका से जामनगर के लिए चले शाम 4 बजे जामनगर पहुँचे। यह रास्ते का एक ठहराव था। वहाँ से अहमदाबाद के लिए टेªन रात 10ः00 बजे थी। सभी वेटिंग रूम में थे। चाय नाश्ता किया। फिर सर ने स्टेशन के आस पास का क्षेत्र घुमाया। यहाँ के घर काफी साफ सुथरे थे। स्थानीय लोगो से वहाँ की संस्कृति जनसंचार माध्यमों के बारेमें बात चीत की। यहाँ के स्थानीय जन भोले भाले ईमानदार थे। संप्रेषण का माध्यम हिन्दी ही था। लोग अच्छे से हिन्दी समझ रहे थे। एक मंदिर में गुजराती में साईं चालीसा व रामायण के दोहे गुजराती में देखने को मिले। वहाँ की दीवारों पर रामायण व साईं के जीवन के चित्र दिवार पर अंकित थे। वहाँ पर सुपारी से बनी गणेश भगवान गणेश की भव्य मूर्ति थी। लौटते वक्त एक छोटी सी मस्जिद देखी। जहाँ पर लड़कियों का प्रवेश वर्जित था वहाँ एक पुराना कुआँ था जिस पर पानी कम था। कुएँ की दीवार पर कबूतरों ने अपना घोसला बनाया था। एक घोसले में कबूतर के दो छोटे छोटे बच्चे भी थे जो बहुत प्यारे थे। रपत सब वापस वेटिंग रूम आ गये। रात 11  बजे ट्रेन आयी व सभी अहमदाबाद के लिए रवाना हुए।
अहमदाबाद- 5 जनवरी 6ः15 पर हम सब अहमदाबाद पहुँचे। वहाँ थोड़ी अव्यव्स्था का सामना करना पड़ा। गुजरात विद्यापीठ में ठहरने कर व्यवस्था थी पर साइंस काफें्रस के कारण जगह भर गयीं मजबूरी में जिस धर्मशाला में रूके वहाँ काफी गंदगी व अव्यवस्था थी। अहमदाबाद में स्वामी नारायण सम्प्रदाय के प्रसिद्ध मंदिर अक्षरधाम में गये। हमारा अगला पड़ाव विश्व संवाद केन्द्र था। यह केन्द्र गुजरात की स्थानीय खबरों को गुजरात के स्थानीय क्षेत्रों तक पहुँचाता है। फिर गुजरात स्थित एकमात्र हिन्दी प्रेस गुजरात वैभव गये। वहाँ से सब गुजरात विद्यापीठ गये वहाँ का पत्रकारिता संस्थान देखा पर अंदर नहीं पा पाये रात्रि होने के कारण वह बंद हो गया था। गाँधी जी का नवजीवन प्रेस भी बाहर से देखा। दूसरे दिन प्रातः ही सभी तैयार हो कर गाँधी जी की कर्म भूमि साबरमती आश्रम गये। वहाँ गाँधी युग की स्पष्ट छाप थी। वहाँ एक संग्रहालय व पुस्तकालय भी था। वहाँ के पिछले भाग में साबरमती नदी बहती थी जिसमें पहले पानी कम फिर नर्मदा नदी से जोड़े जाने के बाद से पानी है। यह वही नदी है जहाँ स्वतंत्रता सेनानी स्नान करते थे। वहाँ गाँधी जी के जीवन काल चित्रों की एक प्रदर्शनी थी। पास में ही एक पुल था जिस पर से गाँधी जी ने डंाडी मार्च शुरू किया था। फिर धर्मशाला आये काफी देर हो रही थी। सभी ने अपना सामान धीरे-धीरे पैक किया फिर जल्दी जल्दी स्टेशन पहुँचे और प्रारम्भ हुआ अगला सफर त्रिवेन्द्रम के लिए। ट्रंेन बम्बई वाले रूट से जा रही थी। टेªन से हम सब ने आनंद देखा। यह दूध का सबसे बड़ा केन्द्र व अमूल प्रोडक्शन का केन्द्र यही हैै इनका मैनेजमेण्ट इनस्टीट्यूट है। यहाँ से फ्री वाफ कास्ट मैनेजमेण्ट है। इनका अपना फार्म हाउस है। इसके संस्थापक वर्गीस कुरियन थे। रास्ते में मुम्बई पड़ा। रात होने के कारण मुम्बई ठीक से देख नहीे पाये पर टेªन से जगमगाती रोशनी दूर से ही दिख रही है। मुम्बई सपनों का शहर है। जगमगाते बल्बांे व वाहनों की रोशनी में टेªन से मुम्बई बहुत सुंदर दिख रहा था।
रास्ते में कोंकर्ण रेलवे से गुजर रहे हैं। वहाँ आस पास के दृश्य काफी मनोरम थे। टेªन की दोनो खिड़की से ताड़ के पेड़, समुद्री झीले, पहाड़ व उनके पीछे से उगते सूरज का दृश्य मन को मोह रहा था। ट्रे चलते चलते गुजरी गोवा से वहाँ स्टेशन पर काजु किशमिश वाले घूम रहे थे। मडगाँव में सबने उतर कर पानी भरा। उससे पूर्व करमाली स्टेशन पर समुद्री झील का नजारा बहुत संदर था। ंबीच में समुद्र पड़ा और काफी लम्बी अंधेरी सुरंग भी पड़ी। इन अंधेरी सुरंगो से गुजरते हुए एक रोमांचक अनुभव हो रहा था। यहाँ कहीं धान की खेती कहीं ईख के खेत कहीं नारियल के पेड़ों का झुंड तो कहीं ताड़ के झुंड शहर की भीड़ व ईमारतो की जगह संुदर प्राकृतिक दृश्य देखकर बहुत अच्छा लग रहा था। जो दृश्य सपनों में, टी.वी. में या कैलेंडर मेें देखे थे उन्हें सही में देखने में बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। गोवा में दूर से दिखती चर्च व ताड़ो के झुंड बीच के बीच में समान दूरी पर बने घर आकर्षण का केन्द्र लग रहे थे। प्राकिृतक सौन्दर्य का अनूठा नजारा था। सबसे अनोखा व रोमांचक अनुभव सागर से गुजरने पर हो रहा था। चारों ओर पानी ही पानी था खिड़की से जिस ओर देखो समुद्र बहुत अच्छा लग रहा था। ठंडी हवा चल रही थी। समुद्र में जहाज भी चल रहे थे और ऊपर पंक्षी भी उड़ रहे थे।
त्रिवेन्द्रम- हापा त्रिवेन्द्रम एक्सप्रेस से प्रातः 3ः40 पर तिरूवनंतपुरम पहुचें। स्टेशन के पास ही पद्यनाभन भगवान के मंदिर ले गये। वहाँ मूछों वाले भगवान की दिवारों में मूर्ति थी। वहाँ दक्षिण भारतीय मंदिरों की विशिष्ट परम्परा थी। वहाँ लड़कियों को साड़ी या एक विशिष्ट प्रकार के वस्त्र को पहनना पड़ता है। मंदिर बालूदार पत्थरों से बना था। वहाँ मंदिर कई प्रागणों में बटाँ था। रास्ते में गणेश जी का एक मंदिर था तो काफी सुंदर था। वहाँ से शाम 3ः30 पर कन्याकुमारी के लिए चले।
कन्याकुमारी- मनोरम दृश्यों का आनंद उठाते हुए भारत के दक्षिण के अंतिम छोर कन्याकुमारी शाम 6ः30 पर पहुचे। विवेकानंद केन्द्र से बस आयी थी। हम सभी विवेकानंद केन्द्र पहुचे। 100 एकड़ की भूमि में फैले केन्द्र स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। रात्रि सबने भोजन उपरंात आराम किया। अगले दिन प्रातः सभी सुर्योदय देखने के लिए गये। वहाँ से समुद्र के बीच स्थित विवेकानंद मंदिर दिखायी दे रहा था। सागर की लहरों की जलक्रीडा व उससे आती ध्वनि तरंगों को सन कर मन प्रसन्न हो रहा था पर भगवान भास्कर की कृवा ना होने से उस अद्भुत दृश्य को देखने से हम वंचित गये। फिर शिव मंदिर कन्याकुमारी मंदिर व कन्याकुमारी देखने गये। कन्याकुमारी में अरब सागर हिन्दमहासागर और बंगाल की खाड़ी के संगम की त्रिवेणी है। पूरे विश्व में एक अद्भुत दृश्य और कही नही है। सागर की लहरो की दिशा से इस संगम के साक्षात दर्शन होते हैं। तट पर सुनामी लहर के कहर का स्पष्ट छाप थी। शिला पर जाने की किसी को अनुमति नही थी। बगल में कई जहाज क्षतिग्रस्त थे। वहाँ शंख व सीप के ढ़ेरो सामान काफी सस्ते दामों में मिल रहे थे। कन्याकुमारी में हम लोग एक चर्च में भी गये। यहाँ की सड़के काफी ढलान वाली थी। कन्याकुमारी जितनी संुदर मनोरम जगह है काफी संुदर यादंे हैं वहाँ का पर एक बुरी बात भी हुयी वहाँ लड़के लड़कियों में गैप आ गया अब यह गु्रप दो हिस्सों में बटँ गया था। यहाँ पर बहुत से लोगो की तबियत भी खराब हो गयी थी। शाम 5ः15 बजे सब कन्याकुमारी एक्सप्रेस से मदुरई के लिए चल पड़े।
मदुरई- 10 जनवरी उसी रात सब मदुरई पहुचें। रात एक धर्मशाला मे गुजारी। अगली सुबह सब मिनाक्षी मंदिर गये। शाम को मदुरई युनिवर्सिटी और प्रसारभारती आकाशवाणी मदुरै गये। मदुरै में ही डेली थान्थी प्रेस के कार्यालय गये। रात आस पास की दुकानो का पी.सी.ओ. वाले और राजस्थान निवासी मदुरै घूमने आयी एक लेडिज से बातचीत की। मदुरै में हिन्दी भाषा की किताबें मिली।
9 बजे शाम बस से मान मदुरै पहुचे। मान मदुरै का अनुभव सबसे बुरा रहा। जीवन में पहली बार स्टेशन पर सोये और बस वाले ने 2 किलो मीटर पहले उतार दिया। वहाँ से सबको अपना सामान रात में ढोना पड़ा। 12 तारीख की सुबह 4 बजे टेªन आयी
रामेश्वर- 12 तारीख की सुबह 6ः30 पर रामेश्वर पहुचे। वहा सब भारत सेवा श्रम में ठहरे। बस से धनुष कोटि के लिए निकले। धनुषकोटि से श्रीलंका बार्डर दिखायी देता है परंतु 7 किमी पहले ही रूकपा पड़ा। वहाँ तक जाने की यात्रा काफी रोमांचक रही। दोनो ओर बंगाल की खाड़ी और बीच में रास्ता एक अनोखी अनुभूति हो रही थी। रामेश्वर बहुत छोटा शहर है। वहाँ की परम्परा में दक्षिण भारतीय शैली की स्पष्ट छाप थी। यात्रा के दौरान पूरी बस मछली की दुर्गन्ध से भर गयी थी लेकिन जब समुद्र तट पहुचे तो सारी थकान मिट गयी और मन प्रसन्नता से भर गया। समुद्र के बीच में कई सारे जहाज थे। वहाँ सागर की लहरो के स्पर्श से मन प्रसन्न हो उठा। लौटते वक्त सभी के मन में धनुष कोटि ना जा पाने की कसक थी।
शाम को सब रामेश्वर मंदिर दर्शन करने गये। दूसरे दिन सब मंदिर, अब्दुल कलाम के घर दूरदर्शन गये। वहाँ शंख और सीप की बहुत बड़ी और सस्ती मार्केट थी।अब्दुल कलाम जी के बडे भाई से मिलने का अनुभव काफी अच्छा रहा। सभी ने उनके साथ फोटो खीचायी। अगला पड़ाच चेन्नई था।
चेन्नई जाते वक्त रास्ते में पावन ब्रिज की यादगार यात्रा की। मान्यता है कि यह वही ब्रिज है जिस पर चढकर भगवान रामचन्द्र जी लंका गये थे।
चेन्नई- खिचड़ी की सुबह 9 बजे के आस पास लोकल टेªन से (पोंगल) के दिन सभी चेन्नई पहुचंे पर चेन्नई में पोंगल की 3 दिन की छुट्टी रहती है अतः कहीं घूम नहीं पाये। शाम को चेन्नई में राष्ट्रीय स्वंय सेवक के आफिस गये। वहाँ उन्होनें सुनामी राहत कार्य की टेप दिखायी। उसी रात प्रसिद्ध मारिना ब्रिज गये पर रात होने के कारण वहाँ ठीक से घूम नहीं पाये। रात खाना खाया व घरों को फोन किया। अगले दिन चेन्नई से तिरूपति के लिए निकले।
तिरूपति- 15 जनवरी की शाम 6 बजे तिरूपति पहुचें। वहाँ दर्शन के लिए बुकिंग करायी। रात्रि 1 बजे उठकर सब दर्शन के लिए निकले पर भगवान तिरूपति की इच्छा नहीं थी। मंदिर तक पहुचँ कर बाला जी के दर्शन नहीं हो पाये। पद्यमावती देवी के मंदिर में भी मेरी तबियत भारी थी और शायद माता की इच्छा नहीं थी। हम लाइन में नहीं लगे और दर्शन नहीं हो पाये। शाम को तिरूपति के प्रेस आन्ध्र ज्योति गये। वहाँ अखबार कैसे छपता है यह देखा गया। तिरूपति में भगवान बाला जी को बाल चढ़ाऐ जाते हैं ज्यादातर लोग सिर मुडाये थे।
तिरूपति में टूर खत्म होने का एहसास भी हो रहा था क्योकि अगला पड़ाव पुरी था और भुवनेश्वर का था जो टूर के अंतिम स्थान थे।ं
पुरी भुवनेश्वर- यात्रा का अन्तिम पड़ाव भगवान जगन्नाथ का धाम पुरी था। वह नगरी अनुठी है। वहाँ का समुद्र सबसे सुन्दर था। ट्रान्टी की कांफ्रेस हुयी। औैर वही से एक बस रिजर्व करा के हम सबने भुनेश्वर घूमा। नन्दन कानन का नाम बहुत सुना था। पर वहाँ के अनोखे अजूबे जानकर देखने का सौभाग्य पहली बार प्राप्त हुआ। ज।न मंदिर, लिंगराज मंदिर व उदयागिरी- धवलगिरी की पहाड़िया देखी। काॅर्णाक मंदिर में पहुँचे। अतः उसे अन्दर से नहीं देख पायें। बाहर से ही देखकर सन्तोष करना पड़ा। अंतिम दिन सभी ने बढ़िया रेटोरेन्ट में लन्च किया व पुरी से यादगार शाॅपिग की। वहाँ पर्स व बैग बहुत सस्ते थे। और 21 जनवरी की सुबह वापसी थी। दिल में अनोखे ख्वाब सजाये। खट्टी-मीठी यादे बसाये। कुछ पल खास लिए, यादो के एहसास लिये। हम सभी 22 जनवरी की सुबह वाराणसी वापस आ गये।  यह शैक्षणिक भ्रमण काफी रोमांचक, दिलचस्प व शिक्षाप्रद रहा। जीवन के कई अनुभव प्राप्त हुये। जहाँ एक ओर धार्मिक दृष्टि से तीन धामों की यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अक्षरधाम मंदिर, तिरूपति बाला, मिनाक्षी मंदिर, पद्यनाभन जैसे दुर्लभ और ऐतिहासिक मंदिरो को देखने को मिला। तो दूसरी डेली थंाथी, आंध्र ज्योति जैसे प्रेसो से नयी तकनीक सीखने को मिली। स्वरूपानन्द स्वामी पुरी के ट्रस्टी, गुजरात वैभव के सम्पादक, चेन्नई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से काफी कुछ अनुभव व ज्ञान की बाते पता चली। कुल मिलाकर यह शैक्षणिक भ्रमण अनुभव, ज्ञान व रोमांच की अनोखी त्रिवेणी रही। यह यादो का यादों का सफर काफी यादगार रहा।
  डाॅ साधना श्रीवास्तव






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