पथ और मंजिल
पथिक तुम भटके हो पथ से
या कोई भ्रम तुमको है
बात तो सही है पथ भी सही है
फिर क्यों मंजिल दूर है
उलझे हो मन के झंझावातों में
उलझे हो या पथ के कांटो ने रोका है
जब मंजिल है इस पर स्थिर
तो तुम क्यों अस्थिर चकाचौंध है
जिसमें खो गए हो
इससे निकले की रोशनी की किरण
सवाल तो बहुत है जवाब सिर्फ तुम हो
अपनी उलझनों से निकलो
आगे बढ़ो कोई भी हो मंजिल तो पता है
फिर कैसे कोई चक्रव्यू क्यों रोकता है
आगे बढ़ो आगे बढ़ते रहो
आगे बढ़ते रहने से हिम्मत मिलेगी
पथिक तुम्हारा होगा मार्ग प्रशस्त
यहीं पर तुम्हें देगा मंजिल का रास्ता
पथ और मंजिल का है गहरा रिश्ता
यह रिश्ता तोड़ना ना मंजिल के पाने से पहले
अपने पथ को छोड़ना ना
तुम्हारी मंजिल है तुम्हारी
बस यही है और मंजिल की कहानी
डॉ साधना श्रीवास्तव
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